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लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया

अध्याय 47

 

संधया हो गई थी। मिल के मजदूर छुट्टी पा गए थे। आजकल दूनी मजदूरी देने पर भी बहुत थोड़े मजदूर काम करने आते थे। पाँड़ेपुर में सन्नाटा छाया हुआ था। वहाँ अब मकानों के भग्नावशेष के सिवा कुछ नजर आता था। हाँ, वृक्ष अभी तक ज्यों-के-त्यों खड़े थे। वह छोटा-सा नीम का वृक्ष अब सूरदास की झोंपड़ी का निशान बतलाता था, फूस लोग बटोर ले गए थे। भूमि समतल की जा रही थी और कहीं-कहीं नए मकानों की दाग-बेल पड़ चुकी थी। केवल बस्ती के अंतिम भाग में एक छोटा-सा खपरैल का मकान अब तक आबाद था, जैसे किसी परिवार के सब प्राणी मर गए हों, केवल एक जीर्ण-शीर्ण, रोग-पीड़ित, बूढ़ा नामलेवा रह गया हो। यही कुल्सूम का घर है, जिसे अपने वचनानुसार, सूरदास की खातिर से मि. जॉन सेवक ने गिराने नहीं दिया है। द्वार पर नसीमा और साबिर खेल रहे हैं और ताहिर अली एक टूटी हुई खाट पर सिर झुकाए बैठे हुए हैं। ऐसा मालूम होता है कि महीनों से उनके बाल नहीं बने। शरीर दुर्बल है, चेहरा मुरझाया हुआ, ऑंखें बाहर को निकल आई हैं। सिर के बाल भी खिचड़ी हो गए हैं। कारावास के कष्टों और घर की चिंताओं ने कमर तोड़ दी है। काल-गति ने उन पर बरसों का काम महीनों में कर डाला है। उनके अपने कपड़े, जो जेल से छूटते समय वापस मिले हैं, उतारे के मालूम होते हैं। प्रात:काल वह नैनी जेल से आए हैं और अपने घर की दुर्दशा ने उन्हें इतना क्षुब्धा कर रखा है कि बाल बनवाने तक की इच्छा नहीं होती। उनके ऑंसू नहीं थमते, बहुत मन को समझाने पर भी हीं थमते। इस समय भी उनकी ऑंखों में ऑंसू भरे हुए हैं। उन्हें रह-रहकर माहिर अली पर क्रोधा आता है और वह एक लम्बी साँस खींचकर रह जाते हैं। वे कष्ट याद रहे हैं, जो उन्होंने खानदान के लिए सहर्ष झेले थे-वे सारी तकलीफें, सारी कुरबानियाँ,सारी तपस्याएँ बेकार हो गईं। क्या इसी दिन के लिए मैंने इतनी मुसीबतें झेली थीं? इसी दिन के लिए अपने खून से खानदान के पेड़ को सींचा था? यही कड़घवे फल खाने के लिए? आखिर मैं जेल ही क्यों गया था? मेरी आमदनी मेरे बाल-बच्चों की परवरिश के लिए काफी थी। मैंने जान दी खानदान के लिए। अब्बा ने मेरे सिर जो बोझ रख दिया था, वही मेरी तबाही का सबब हुआ। गजब खुदा का। मुझ पर यह सितम! मुझ पर यह कहर! मैंने कभी नए जूते नहीं पहने, बरसों कपड़े में थिगलियाँ लगा-लगाकर दिन काटे, बच्चे मिठाइयों को तरस-तरसकर रह जाते थे, बीबी को सिर के लिए तेल भी मयस्सर होता था, चूड़ियाँ पहनना नसीब था, हमने फाके किए, जेवर और कपड़ों की कौन कहे, ईद के दिन भी बच्चों को नए कपड़े मिलते थे, कभी इतना हौसला हुआ कि बीबी के लिए एक लोहे का छल्ला बनवाता! उलटे उसके सारे गहने बेच-बेचकर खिला दिए। इस सारी तपस्या का यह नतीजा! और वह भी मेरी गैरहाजिरी में। मेरे बच्चे इस तरह घर से निकाल दिए गए, गोया किसी गैर के बच्चे हैं, मेरी बीबी को रो-रोकर दिन काटने पड़े, कोई ऑंसू पोंछनेवाला भी नहीं हुआ, और मैंने इसी लौंडे के लिए गबन किया था? इसी के लिए अमानत की रकम उड़ाई थी! क्या मैं मर गया था? अगर वे लोग मेरे बाल-बच्चों को अच्छी तरह इज्जत-आबरू के साथ रखते, तो क्या मैं ऐसा गया-गुजरा था कि उनके एहसान का बोझ उतारने की कोशिश करता! दूध-घी खिलाते, तंजेब-अध्दी पहनाते, रूखी रोटियाँ ही देते, गजी-गाढ़ा ही पहनाते; पर घर में तो रखते! वे रुपयों के पान खा जाते होंगे, और यहाँ मेरी बीबी को सिलाई करके अपना गुजर-बसर करना पड़ा। उन सबों से तो जॉन सेवक ही अच्छे, जिन्होंने रहने का मकान तो गिरवाया, मदद करने के लिए आए तो।

 

कुल्सूम ने ये विपत्ति के दिन सिलाई करके काटे थे। देहात की स्त्रिायाँ उसके यहाँ अपने कुरतियाँ, बच्चों के लिए टोप और कुरते सिलातीं। कोई पैसे दे जातीं, कोई अनाज। उसे भोजन-वस्त्रा का कष्ट था। ताहिर अली अपनी समृध्दि के दिनों में भी इससे ज्यादा सुख दे सके थे। अंतर केवल यह था कि तब सिर पर अपना पति था, अब सिर पर कोई था। इस आश्रयहीनता ने विपत्ति को और भी असह्य बना दिया था। अंधकार में निर्जनता और भी भयप्रद हो जाती है।

 

ताहिर अली सिर झुकाए शोक-मग्न बैठे थे कि कुल्सूम ने द्वार पर आकर कहा-शाम हो गई और अभी तक कुछ नहीं खाया। चलो, खाना ठंडा हुआ जाता है।

 

ताहिर अली ने सामने के खंडहरों की ओर ताकते हुए कहा-माहिर थाने ही में रहते हैं या कहीं और मकान लिया है?

 

कुल्सूम-मुझे क्या खबर, यहाँ तब से झूठों भी तो नहीं आए। जब ये मकान खाली करवाए जा रहे थे, तब एक दिन सिपाहियों को लेकर आए थे। नसीमा और साबिर चचा-चचा कह के दौड़े, पर दोनों को दुतकार दिया।

 

ताहिर-हाँ, क्यों दुताकरते, उनके कौन होते थे!

 

कुल्सूम-चलो, दो लुकमे खा लो।

 

ताहिर-माहिर मियाँ से मिले बगैर मुझे दाना-पानी हराम है।

 

कुल्सूम-मिल लेना, कहीं भागे जाते हैं।

 

ताहिर-जब तक जी-भर उनसे बात कर लूँगा, दिल को तस्कीन होगी।

 

कुल्सूम-खुदा उन्हें खुश रखे, हमारी भी तो किसी तरह कट ही गई। खुदा ने किसी--किसी हीले से रोजी पहुँचा तो दी। तुम सलामत रहोगे,तो हमारी फिर आराम से गुजरेगी, और पहले से ज्यादा अच्छी तरह। दो को खिलाकर खायँगे। उन लोगों ने जो कुछ किया, उसका सबाब और अजाब उनको खुदा से मिलेगा।

 

ताहिर-खुदा ही इंसाफ करता, तो हमारी यह हालत क्यों होती? उसने इंसाफ करना छोड़ दिया।

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